Top Guidelines Of चमकौर का युद्ध
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गुरूदेव जी ने कच्ची गढ़ी त्यागने की योजना बनाई। दो जवानों को साथ चलने को कहा। शेष पाँचों को अलग अलग मोर्चो पर नियुक्त कर दिया। भाई जीवन सिंघ, जिसका डील-डौल, कद-बुत तथा रूपरेखा गुरूदेव जी के साथ मिलती थी, उसे अपना मुकुट, ताज पहनाकर अपने स्थान अट्टालिका पर बैठा दिया कि शत्रु भ्रम में पड़ा रहे कि गुरू गोबिन्द सिंघ स्वयँ हवेली में हैं, किन्तु उन्होंने निर्णय लिया कि यहाँ से प्रस्थान करते समय हम शत्रुओं को ललकारेगें क्योंकि चुपचाप, शान्त निकल जाना कायरता और कमजोरी का चिन्ह माना जाएगा और उन्होंने ऐसा ही किया।
चमकौर का विलक्षण युद्ध और साहिबज़ादों की शहादत
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प्रिगोजिन शनिवार रात जब रोस्तोव शहर छोड़कर जा रहे थे, तब सड़कों पर मौजूद लोगों ने उनके साथ सेल्फी ली।
ठंडे किले में कैद माता गुजरी ने दोनों साहिबजादों को बेहद प्यार से तैयार कर दुसरे दिन दोबारा से वजीर खान की कचहरी में भेजा। यहां फिर से वजीर खान ने उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए कहा लेकिन छोटे साहिबजादों ने मना कर दिया और उन्होंने फिर से जयकारे लगाने लगे। यह सुन वजीर read more खान गुस्से से तिलमिला उठा और दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवाने का हुक्म दिया। उसके बाद मुगल सैनिकों ने दोनों साहिबजादों जिंदा ही दोनों भाईयों को ईंट की दीवार चुन कर शहीद कर दिया। जैसे ही यह दुख भरी खबर माता गुजरी के पास पहुंची, उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए।
पीएम मोदी के मिस्र और मस्जिद में जाने पर वहां के मीडिया में क्या कहा जा रहा है?
बीबीसी मुंडो से बात करते हुए ज़ैक विटलिन कहते हैं, “जब तक रूस आपस में एकजुट नहीं है, यूक्रेन पर अपनी नीति को आगे लेकर बढ़ना उनके लिए आसान नहीं है.”
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इस अवधारणा को चित्र के लिए एक आधार के रूप में कार्य करता है कि एक विशाल ऑनलाइन मानसिक नक्शा है।
इस प्रकार तो श्री गुरू नानक देव जी का लक्ष्य सम्पूर्ण नहीं हो पायेगा। यदि आप जीवित रहे तो हमारे जैसे हज़ारों लाखों की गिनती में सिक्ख आपकी शरण में एकत्र होकर फिर से आपके नेतृत्त्व में सँघर्ष प्रारम्भ कर देंगे।
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योजना अनुसार गुरूदेव जी और सिक्ख अलग-अलग दिशा में कुछ दूरी पर चले गये और वहाँ से ऊँचे स्वर में आवाजें लगाई गई, पीर–ऐ–हिन्द जा रहा है किसी की हिम्मत है तो पकड़ ले और साथ ही मशालचियों को तीर मारे जिससे उनकी मशालें नीचे कीचड़ में गिर कर बुझ गई और अंधेरा घना हो गया। पुरस्कार के लालच में शत्रु सेना आवाज की सीध में भागी और आपस में भिड़ गई। समय का लाभ उठाकर गुरूदेव जी और दोनों सिंह अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने लगे और यह नीति पूर्णतः सफल रही। इस प्रकार शत्रु सेना आपस में टकरा-टकराकर कट मरी।
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